भारतीय राजनीति में नेताओं की उम्र हमेशा से ही एक महत्वपूर्ण बहस का केंद्र रही है। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह पार्टी की सोच, ऊर्जा और भविष्य की दिशा का भी संकेत देती है। एक तरफ अनुभव की धरोहर को महत्व देने वाले दिग्गज हैं, तो दूसरी तरफ युवा ऊर्जा और गतिशीलता का वादा। हाल के घटनाक्रमों में, देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों—कांग्रेस और भाजपा—के नेतृत्व में यह अंतर स्पष्ट रूप से देखने को मिला है।
भाजपा में 'जनरेशनल शिफ्ट' का संकेत
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बिहार के पथ निर्माण मंत्री और पाँच बार के विधायक नितिन नबीन को अपना नया राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है। 45 साल के नवीन, दिवंगत भाजपा नेता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा के पुत्र हैं और उन्होंने यह पद जेपी नड्डा की जगह ली है।
45 साल की उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिलना भाजपा की युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने की नीति को दर्शाता है। नबीन को एक युवा और गतिशील नेता माना जाता है, जिनकी विचारधारा जमीनी स्तर से जुड़ी हुई है। भाजपा की संसदीय बोर्ड ने उनकी नियुक्ति को उनके 'समर्पण और जमीनी काम' का इनाम बताया है।
यह पहली बार नहीं है जब भाजपा ने युवाओं को आगे बढ़ाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में किरेन रिजिजू, अनुराग ठाकुर, तेजस्वी सूर्य, और अन्नामलई जैसे कई युवा नेताओं को प्रमोट किया है। पार्टी की आईटी सेल और युवा मोर्चा में भी 30-40 साल के नेता सक्रिय हैं, जो यह दिखाता है कि भाजपा मेरिट-बेस्ड प्रमोशन और संगठनात्मक स्तर पर युवाकरण की संस्कृति को बढ़ावा दे रही है
कांग्रेस में अनुभव की भरमार
वहीं, दूसरी तरफ, कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व अनुभव और वरिष्ठता पर टिका हुआ है। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की उम्र 83 साल है। 2022 से पार्टी का नेतृत्व कर रहे खरगे दशकों के राजनीतिक अनुभव की धरोहर हैं। उन्होंने कर्नाटक में मंत्री पद से लेकर केंद्र में मंत्री तक का लंबा सफर तय किया है।
यह अंतर सिर्फ संख्याओं का नहीं, बल्कि दो बड़ी पार्टियों के विज़न का प्रतीक बन गया है। कांग्रेस में युवा नेतृत्व की कमी एक पुरानी शिकायत रही है। हालांकि 55 साल के राहुल गांधी और 53 वर्षीय प्रियंका गांधी को पार्टी के युवा चेहरों में गिना जाता है, लेकिन पार्टी का शीर्ष नेतृत्व और मार्गदर्शन अभी भी 70-80 के दशक के नेताओं पर टिका है। उदाहरण के लिए, 79 वर्षीय सोनिया गांधी अभी भी पार्टी में अत्यंत प्रभावशाली हैं।
यह स्थिति कांग्रेस को एक 'पुरानी पीढ़ी की पार्टी' का टैग देती है, जहां माना जाता है कि युवा कैडर की महत्वाकांक्षाएँ दब जाती हैं और पार्टी का फैसला लेने का तंत्र वरिष्ठता पर आधारित होता है।
कौन सा दृष्टिकोण बेहतर?
सवाल उठता है कि राजनीतिक सफलता का पैमाना उम्र है या अनुभव की गहराई?
• अनुभव (कांग्रेस): वरिष्ठ नेताओं का अनुभव उन्हें संकट प्रबंधन, राजनीतिक दांव-पेंच और सरकार चलाने की बारीकियों को समझने में मदद करता है। खरगे जैसा नेतृत्व स्थिरता और दशकों से चली आ रही विचारधारा को बनाए रखता है।
• युवा ऊर्जा (भाजपा): नितिन नबीन जैसे युवा नेताओं की नियुक्ति पार्टी में नई ऊर्जा लाती है, जो मतदाताओं की युवा आबादी को आकर्षित करती है। युवा नेतृत्व परिवर्तन, नवाचार और आधुनिक राजनीतिक रणनीतियों को तेजी से अपनाता है।
यह अंतर स्पष्ट करता है कि भाजपा संगठनात्मक स्तर पर तेज और गतिशील बदलाव पर जोर दे रही है, जबकि कांग्रेस पार्टी अभी भी अपने अनुभवी स्तंभों पर विश्वास बनाए हुए है।