सितंबर का महीना बॉक्स ऑफिस के लिए किसी महायुद्ध से कम नहीं है। एक तरफ़ 5 सितंबर को रिलीज़ हो रही ‘द बंगाल फाइल्स’, जो पहले से हीअपने तीखे मुद्दों और गहन प्रचार के चलते सुर्खियों में है। दूसरी ओर 12 सितंबर को आने वाली ‘मिराई’, ‘डेमन स्लेयर’, ‘लव इन वियतनाम’, ‘हीरएक्सप्रेस’ और ‘मन्नू क्या करेगा’ जैसी फिल्में हैं, जिनकी मार्केटिंग और फैनबेस उन्हें पहले ही विजेता बना चुके हैं। ऐसे में एक नाम अचानक से सामनेआता है — ‘एक चतुर नार’। ना कोई चर्चा, ना कोई उत्साह, और ना ही कोई प्रचार। यह फिल्म इस लाइनअप में ऐसे लगती है जैसे शादी में कोई बिना बुलावे आ गया हो।
‘एक चतुर नार’ के इर्द-गिर्द माहौल पूरी तरह से शांत है — इतनी खामोशी कि शायद खुद फिल्म के निर्माता भी भूल गए हैं कि यह रिलीज़ हो रही है।सोशल मीडिया पर इस फिल्म का नाम सुनते ही लोग चौंक रहे हैं, मज़ाक बना रहे हैं। एक यूज़र ने लिखा, “ये फिल्म है या कोई प्रैंक चल रहा है?” तोदूसरे ने कहा, “'द बंगाल फाइल्स' और 'डेमन स्लेयर' के टिकट लेने के बाद ये शायद थिएटर की सीढ़ियों पर धूल फांकेगी।” इतना साफ है कि इसफिल्म की मौजूदगी न के बराबर है, और इसका रिलीज़ शेड्यूल में होना ही कई लोगों के लिए हैरानी की बात बन गया है।
अब बात करें इस फिल्म की कास्ट की, तो दिव्या खोसला कुमार और नील नितिन मुकेश की जोड़ी दर्शकों को ज़रा भी उत्साहित नहीं कर पा रही है।दिव्या का करियर एक ऐसे प्रयास की तरह दिखता है, जिसमें बार-बार अपनी पहचान बनाने की कोशिश हो रही है, लेकिन हर बार नतीजा फ्लॉपनिकलता है। उनकी पिछली फिल्म ‘सावी’ का प्रदर्शन बेहद कमजोर था, और अब ‘एक चतुर नार’ में उनकी वापसी को दर्शक मजबूरी और दिखावे केतौर पर देख रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग साफ कह रहे हैं, “दिव्या को ज़बरदस्ती स्टार बनाने की कोशिश बंद करो। जनता ने मना कर दिया है।”
वहीं नील नितिन मुकेश, जो कभी गहरी भूमिकाओं के लिए जाने जाते थे, अब अपनी स्क्रिप्ट चॉइस को लेकर सवालों के घेरे में हैं। ‘वज़ीर’ और ‘जॉनीगद्दार’ जैसे किरदार निभा चुके नील अब ऐसी फिल्मों में नज़र आ रहे हैं, जो न तो उनकी प्रतिभा को दिखाती हैं, न ही उन्हें कोई नया मुकाम देती हैं।एक वायरल मीम में किसी ने लिखा, “नील, अगर तुम ठीक हो तो दो बार पलकें झपकाओ।” इससे साफ है कि दर्शक अब उन्हें इस तरह के प्रोजेक्ट्समें देखना नहीं चाहते।
ट्रेड एक्सपर्ट्स की मानें तो फिल्म की ओपनिंग ₹20-30 लाख से ऊपर नहीं जाएगी, जो कि मौजूदा प्रतिस्पर्धा को देखते हुए एक बेहद शर्मनाकआंकड़ा है। जहां ‘द बंगाल फाइल्स’ के शो पहले ही हाउसफुल होने की उम्मीद है, वहीं ‘एक चतुर नार’ को शायद शो तक मिलना मुश्किल हो जाए।दर्शकों ने पहले ही सोशल मीडिया पर इसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया है। कोई कह रहा है, “ये फिल्म रिलीज़ हो रही है या त्यागपत्र दे रही है?”तो कोई लिखता है, “हर बार दिव्या खोसला फिल्म करती हैं, बॉलीवुड दो कदम पीछे चला जाता है।”
सबसे बड़ा सवाल यही उठता है — इस फिल्म को बनाने की मंजूरी आखिर दी किसने? जब सितंबर जैसे महीने में हर स्क्रीन्स की लड़ाई हो, जब हरवीकेंड करोड़ों की रेस हो, तो ऐसी फिल्म को रिलीज़ करना एक भारी भूल लगती है। ना कंटेंट है, ना स्टार पावर, और ना ही कोई मांग। ‘एक चतुर नार’ एक क्लासिक उदाहरण बन सकती है इस बात का कि किस तरह एक फिल्म "Dead on Arrival" हो सकती है — यानि रिलीज़ से पहले ही खत्म।
अंत में बात सीधी है — जब लोग इस सितंबर की बड़ी फिल्मों को याद करेंगे, तब ‘द बंगाल फाइल्स’, ‘मिराई’, और ‘डेमन स्लेयर’ जैसे नाम गूंजेंगे।और ‘एक चतुर नार’? बस एक फुटनोट बनकर रह जाएगी, जिसे कोई याद भी नहीं रखना चाहेगा। यह फिल्म ना केवल बॉक्स ऑफिस की लड़ाई हारीहै, बल्कि उसने साबित किया है कि हर फिल्म स्टेज की हकदार नहीं होती — और ये तो शायद स्क्रिप्ट की भी नहीं थी।