मुंबई, 20 मई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। भारत के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने बुधवार को अदालत में टिप्पणी करते हुए कहा कि वकील छुट्टियों के दौरान काम करना नहीं चाहते, लेकिन जब मुकदमों का बोझ बढ़ता है तो उसके लिए जजों को दोषी ठहराया जाता है। यह बात उस समय कही गई जब वे और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह एक मामले की सुनवाई कर रहे थे और एक वकील ने याचिका पर सुनवाई को गर्मी की छुट्टियों के बाद के लिए टालने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जारी एक अधिसूचना में बताया है कि 26 मई से 13 जुलाई तक अदालत सीमित रूप से कार्य करती रहेगी। इस दौरान हर सप्ताह दो से पांच पीठों का गठन किया जाएगा। खास बात यह है कि इस बार स्वयं CJI समेत सर्वोच्च अदालत के पांच न्यायाधीश छुट्टियों में भी सुनवाई करेंगे, जबकि पहले यह परंपरा नहीं थी। पूर्व में केवल दो वैकेशन बेंच होती थीं और वरिष्ठ न्यायाधीश अवकाश के दौरान अदालत नहीं आते थे। इस वर्ष 26 मई से 1 जून तक चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस जे. के. माहेश्वरी मामलों की सुनवाई करेंगे। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री सोमवार से शुक्रवार सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुलेगी, जबकि शनिवार, रविवार और सार्वजनिक छुट्टियों पर यह बंद रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट में इस समय 82,831 मामले लंबित हैं, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। पिछले एक साल में ही 27,604 नए मामले लंबित हुए हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में अब तक 38,995 नए मामले दर्ज हुए, जिनमें से 37,158 का निपटारा किया गया। पिछले दस वर्षों में आठ बार लंबित मामलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। केवल 2015 और 2017 में यह आंकड़ा कुछ कम हुआ था। देश के उच्च न्यायालयों में भी स्थिति चिंताजनक है। 2014 में जहां हाईकोर्ट्स में 41 लाख मामले लंबित थे, वहीं अब यह संख्या बढ़कर 59 लाख तक पहुंच गई है। पिछले एक दशक में केवल एक बार लंबित मामलों में गिरावट देखी गई है। देश की सभी अदालतों को मिलाकर 5 करोड़ से अधिक मामले अब भी न्याय की प्रतीक्षा में हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पेपरलेस सिस्टम को अपनाकर केसों के निपटारे में सुधार किया है। 2013 में जहां लंबित मामलों की संख्या 50 हजार से बढ़कर 66 हजार हो गई थी, वहीं 2014 में यह घटकर 63 हजार और 2015 में 59 हजार रह गई। 2017 में जस्टिस जेएस खेहर के कार्यकाल में पेपरलेस कोर्ट सिस्टम लागू किया गया जिससे लंबित मामलों की संख्या घटकर 56 हजार तक आ गई थी।