अमेरिका के दूसरे सबसे बड़े शहर लॉस एंजेल्स में इन दिनों हालात बेहद तनावपूर्ण हैं। इमिग्रेशन रेड के खिलाफ शुरू हुए शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन अब उग्र होते जा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच झड़पें आम हो गई हैं। हालात को काबू में करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2000 से अधिक नेशनल गार्ड्स को तैनात कर दिया है।
लॉस एंजेल्स, न केवल कैलिफोर्निया राज्य का सबसे बड़ा जिला है, बल्कि यह अमेरिका की सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से भी एक अहम पहचान रखता है। यह शहर हॉलीवुड, मनोरंजन उद्योग और बड़ी अप्रवासी आबादी के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें बड़ी संख्या में मेक्सिकन मूल के लोग रहते हैं।
ट्रंप और राज्य प्रशासन के बीच टकराव
प्रदर्शनों के बीच अमेरिका की संघीय सरकार और राज्य सरकार आमने-सामने आ गए हैं। ट्रंप ने कहा है कि अगर कैलिफोर्निया के गवर्नर गैविन न्यूज़म और लॉस एंजेल्स की मेयर इस स्थिति को नियंत्रित नहीं कर सकते, तो संघीय सरकार दंगे और लूटपाट पर सीधा नियंत्रण लेगी।
ट्रंप का यह बयान आग में घी डालने जैसा साबित हुआ। गवर्नर गैविन ने प्रतिक्रिया में कहा कि “ट्रंप का आदेश न केवल लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है, बल्कि इससे समुदाय में भय फैल रहा है।”
इमिग्रेशन रेड और गिरफ्तारी का सिलसिला
इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) ने बीते हफ्ते लॉस एंजेल्स में 44 लोगों को अरेस्ट किया था। इसके बाद से विरोध प्रदर्शन और तेज हो गए। अधिकारियों का कहना है कि अब हर दिन 1600 से अधिक प्रवासियों को पकड़ा जा रहा है। ट्रंप प्रशासन ने ICE को निर्देश दिया है कि 3000 से ज्यादा अवैध प्रवासियों को प्रतिदिन हिरासत में लिया जाए।
ट्रंप ने कहा कि अमेरिका की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए यह कार्रवाई जरूरी है। “हम अमेरिका-मेक्सिको सीमा को पूरी तरह सील करेंगे और जो लोग अवैध रूप से रह रहे हैं, उन्हें देश से बाहर निकाल देंगे।”
मेक्सिकन प्रवासियों का गढ़ है लॉस एंजेल्स
गौरतलब है कि लॉस एंजेल्स मेक्सिको से आने वाले अप्रवासियों का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां पर अमेरिका में घुसने वाले सबसे अधिक अप्रवासी इसी शहर के आसपास की सीमा से प्रवेश करते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका में मेक्सिकन मूल के करीब 10.9 मिलियन लोग रहते हैं, जो कि कुल अप्रवासी आबादी का लगभग 23% हिस्सा हैं।
इन्हीं लोगों को निशाना बनाकर इमिग्रेशन रेड चलाई जा रही है, जिससे लॉस एंजेल्स की बड़ी जनसंख्या में असुरक्षा और भय का माहौल बन गया है।
प्रदर्शनकारियों का आरोप: डर और अस्थिरता फैला रही सरकार
प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन की यह कार्रवाई न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह देश की लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ भी है। एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “हम केवल बेहतर जीवन के लिए अमेरिका आए हैं। हमारे साथ आतंकवादियों जैसा बर्ताव किया जा रहा है।”
प्रदर्शनकारी यह भी कह रहे हैं कि इमिग्रेशन रेड केवल राजनीतिक लाभ के लिए की जा रही हैं। उनका आरोप है कि ट्रंप चुनावी रणनीति के तहत प्रवासियों को निशाना बना रहे हैं ताकि अपने कट्टर समर्थकों को खुश कर सकें।
ट्रंप की दोहरी रणनीति
डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति रहते हुए भी इमिग्रेशन पर कठोर रुख अपनाया था और 2025 के चुनावी माहौल में वापसी की कोशिश कर रहे ट्रंप अब एक बार फिर अपने पुराने एजेंडे को दोहराते नजर आ रहे हैं। उनका जोर “अमेरिका फर्स्ट” नीति पर है, जिसके तहत वे अवैध प्रवासियों को खतरा मानते हैं और सीमा सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं।
ट्रंप का कहना है कि यह कार्रवाई राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है, वहीं उनके आलोचकों का कहना है कि वे संवैधानिक अधिकारों का दमन कर रहे हैं और सामाजिक ताने-बाने को तोड़ रहे हैं।
क्या आगे होगा?
फिलहाल लॉस एंजेल्स में हालात काबू में नहीं हैं। नेशनल गार्ड की तैनाती के बावजूद प्रदर्शनकारियों का आक्रोश थमा नहीं है। राज्य प्रशासन और संघीय सरकार के बीच का टकराव बढ़ता जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर संवाद और समाधान की कोशिश नहीं की गई, तो यह मामला देशव्यापी संकट का रूप ले सकता है। अमेरिका में पहले से ही चुनावी माहौल गर्म है, ऐसे में इस तरह की घटनाएं राजनीतिक विभाजन को और गहरा कर सकती हैं।
निष्कर्ष:
लॉस एंजेल्स में हो रहे विरोध प्रदर्शन अमेरिका की इमिग्रेशन नीति, राज्य और संघीय सरकार के टकराव और सामाजिक समरसता की परीक्षा ले रहे हैं। यह केवल एक शहर की लड़ाई नहीं है, बल्कि अमेरिका की लोकतांत्रिक व्यवस्था, मानवाधिकार और राजनीतिक दिशा की भी परीक्षा है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि क्या अमेरिका इस संकट से लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ उबर पाता है या सख्ती की नीति इसे और उलझा देती है।