दुनिया भर में बदलते भू-राजनीतिक समीकरण, आपूर्ति श्रृंखला में लगातार बाधाएं, और विभिन्न देशों की व्यापार नीतियों में संरक्षणवाद (Protectionism) की वापसी ने वैश्विक व्यापार को अस्थिर कर दिया है। ऐसे माहौल में भी भारत के लिए अवसरों की एक नई खिड़की खुल रही है। यही सोच सामने रखी है महिंद्रा एंड महिंद्रा समूह के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने, जिन्होंने हाल ही में कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट में शेयरधारकों को संबोधित करते हुए भारत की भूमिका को एक "विश्वसनीय विकल्प" के रूप में रेखांकित किया।
वैश्विक अस्थिरता और संरक्षणवाद की चुनौती
आनंद महिंद्रा ने अपने वक्तव्य में इस बात पर जोर दिया कि आज की दुनिया पहले से कहीं अधिक अनिश्चित हो गई है। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध, ईरान और पश्चिमी देशों के बीच तनाव, और अमेरिका की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के चलते उदार वैश्विक व्यापार व्यवस्था कमजोर हुई है।
उन्होंने बताया कि संरक्षणवाद की बढ़ती लहर और टैरिफ आधारित नीतियों ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है। ट्रंप प्रशासन की आक्रामक टैरिफ नीतियों के बाद से व्यापार में जवाबी प्रतिबंध, व्यापारिक गुटबंदी और राजनीतिक ध्रुवीकरण जैसी स्थितियां बनी हैं।
अमेरिका-चीन टकराव: दुनिया के लिए चेतावनी
महिंद्रा का मानना है कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक दूरी लगातार बढ़ रही है। विशेष रूप से उपभोक्ता सामान और इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर, जो मुख्य रूप से चीन की सप्लाई चेन पर निर्भर हैं, इनपुट लागत में बढ़ोतरी से प्रभावित हो रहे हैं।
इस परिस्थिति में वैश्विक कंपनियों के सामने अब एक बड़ा सवाल है—क्या वे अपनी निर्भरता को एक देश पर सीमित रखें या सप्लाई चेन को विविध और लचीला (diversified and resilient) बनाएं?
भारत: सप्लाई चेन का भविष्य
इसी संदर्भ में भारत के सामने एक सुनहरा अवसर आ खड़ा हुआ है। आनंद महिंद्रा ने यह स्पष्ट किया कि भारत चीन का विकल्प बनने की स्थिति में है। उन्होंने कहा कि चीन की कड़ी व्यापार नीतियों और पश्चिमी देशों के साथ उसके बिगड़ते रिश्ते की वजह से भारत को अब मैन्युफैक्चरिंग और वैश्विक आपूर्ति के नए केंद्र के रूप में उभरने का मौका मिल सकता है।
महिंद्रा का कहना है कि इसके लिए R&D (अनुसंधान एवं विकास) और इनोवेशन पर जोर देना होगा। साथ ही मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को केंद्र में लाना होगा। निजी क्षेत्र को निवेश के लिए प्रोत्साहित करना और सरकार को व्यापार-अनुकूल नीतियों को बढ़ावा देना जरूरी है।
भारत के पक्ष में क्या है?
आनंद महिंद्रा ने भारत की कई विशेषताओं को रेखांकित किया जो देश को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर करती हैं:
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स्थिर लोकतंत्र: भारत एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है जिसकी सरकारों में निरंतरता है और जो निवेशकों को भरोसा दिलाती है।
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भरोसेमंद भागीदार: वैश्विक मंचों पर भारत को एक ऐसे सहयोगी के रूप में देखा जाता है जो नियमों का पालन करता है और विश्वसनीय है।
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राजनीतिकरण से दूर सेना: भारत की सैन्य ताकत राजनीतिक हस्तक्षेप से परे है, जो राष्ट्रीय स्थिरता का प्रतीक है।
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युवा कार्यबल: भारत के पास दुनिया की सबसे युवा कार्यबल में से एक है, जो औद्योगिक उत्पादन में लंबी अवधि तक सहयोग कर सकता है।
प्रतिस्पर्धा भी है चुनौती
हालांकि आनंद महिंद्रा ने यह भी स्वीकार किया कि भारत को तेजी से कदम उठाने की जरूरत है। फिलीपींस और वियतनाम जैसे देश पहले ही खुद को भविष्य के मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में प्रस्तुत कर चुके हैं।
यदि भारत ने जल्दी निर्णय नहीं लिया और बुनियादी ढांचे तथा नीति सुधारों में देरी की, तो ये अवसर हाथ से फिसल सकते हैं।
निष्कर्ष: भारत के लिए ‘विंडो ऑफ अपॉर्चुनिटी’
आनंद महिंद्रा की सोच केवल एक कारोबारी नजरिया नहीं है, बल्कि यह एक रणनीतिक दृष्टिकोण है जो भारत को वैश्विक अस्थिरता के बीच स्थायित्व और नवाचार का केंद्र बना सकता है।
भारत को अब सप्लाई चेन, मैन्युफैक्चरिंग, और इनोवेशन पर केंद्रित रणनीतियों को अपनाना होगा। तभी देश इस वैश्विक पुनर्गठन में अग्रणी भूमिका निभा पाएगा।
आख़िर में, जैसा कि आनंद महिंद्रा ने कहा—“संभावनाएं मौजूद हैं, पर उन्हें हकीकत में बदलने के लिए तेज़ी और संकल्प की ज़रूरत है।”