झांसी न्यूज डेस्क: समाज के हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी जगह बना रही हैं, अब भवन निर्माण में भी उनकी मजबूत उपस्थिति देखी जा रही है। पुरुष प्रधान माने जाने वाले इस क्षेत्र में महिलाएं बतौर राजमिस्त्री काम कर रही हैं और अपने परिवार का सहारा बन रही हैं। धूप हो या सर्दी, ये महिलाएं हर मौसम में अपने हौसले के दम पर आगे बढ़ रही हैं और यह साबित कर रही हैं कि मेहनत और आत्मनिर्भरता की कोई सीमा नहीं होती।
रक्सा की रहने वाली पिंकी अहिरवार की कहानी हिम्मत और संघर्ष की मिसाल है। उनके पति अशोक अहिरवार राजमिस्त्री थे, लेकिन एक सड़क हादसे में उनके दोनों पैर टूट गए, जिससे घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। तब पिंकी ने घर की जिम्मेदारी संभाली और मजदूरी करने लगीं। काम के दौरान उन्होंने भवन निर्माण की बारीकियां सीखीं और धीरे-धीरे राजमिस्त्री बन गईं। अब वे न सिर्फ खुद का काम करती हैं, बल्कि ठेके भी लेने लगी हैं। वे खुद ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन अपने बच्चों कृष और वर्षा की पढ़ाई पर पूरा ध्यान देती हैं।
प्रेमनगर की रहने वाली प्रीति वंशकार ने भी कुछ ऐसा ही साहस दिखाया। उनके पति राजा वंशकार वर्षों से राजमिस्त्री का काम कर रहे थे, लेकिन आमदनी कम होने के कारण परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में प्रीति ने भी काम सीखना शुरू किया और पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने लगीं। अब दोनों मिलकर भवन निर्माण का काम करते हैं, जिससे उनकी आय भी बढ़ी और परिवार की स्थिति भी बेहतर हुई। हालांकि, काम के दौरान प्रीति को एक बार गंभीर चोट भी लगी थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और दोबारा अपने काम पर लौट आईं।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर अमर उजाला ने 'तुमसे है उजाला' अभियान की शुरुआत की है, जिसमें ऐसी महिलाओं की कहानियां साझा की जाएंगी, जिन्होंने अपने हौसले और मेहनत से समाज में बदलाव लाने का काम किया है। इस अभियान के तहत इन महिलाओं को सम्मानित भी किया जाएगा। इच्छुक महिलाएं इस पहल में शामिल होने के लिए सोमवार तक आवेदन कर सकती हैं।