झांसी न्यूज डेस्क: मेडिकल कॉलेज के पोस्टमार्टम हाउस में 18 दिन तक लावारिस शव के सड़ने की घटना की जांच अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि रविवार को एक और अमानवीय मामला सामने आ गया। टीबी से जूझ रहे उरई निवासी सुनील गुप्ता की हालत बिगड़ने पर तीन जून को मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था। लेकिन गंभीर स्थिति के बावजूद डॉक्टरों ने पांच जून को उनके 11 वर्षीय बेटे वंश से सहमति पत्र लिखवाकर मरीज को छुट्टी दे दी। नाबालिग ने पिता के इलाज के लिए गुहार लगाई, लेकिन डॉक्टरों ने कोई रहम नहीं दिखाया।
पिता को लेकर मासूम बेटा कॉलेज परिसर के ही आश्रय स्थल पर आ गया, जहां इलाज और दवा के अभाव में दो दिन तक तड़पने के बाद शनिवार की रात सुनील की मौत हो गई। रात तीन बजे वंश ने ग्वालियर में रहने वाली अपनी बुआ को फोन कर बुलाया। बुआ के आने के बाद शव को उरई ले जाया गया और रविवार दोपहर अंतिम संस्कार कर दिया गया। यह पूरी घटना सवाल खड़े करती है कि आखिर गंभीर मरीज को वार्ड से क्यों निकाला गया और नाबालिग की सहमति पर ऐसा फैसला किसने लिया?
आश्रय स्थल में रुके अन्य लोगों ने बताया कि बच्चा लगातार रोता रहा, डॉक्टरों से मदद की मिन्नतें करता रहा, लेकिन किसी ने उसकी सुध नहीं ली। न दवा मिली, न देखभाल। वह सबको यही बताता रहा कि डॉक्टरों ने इलाज करने से मना कर दिया है और वार्ड से भगा दिया गया है। जब सुनील ने दम तोड़ा, तब वंश ने खुद फोन कर मदद मांगी। यह दर्दनाक घटना सिस्टम की बेरुखी और संवेदनहीनता को उजागर करती है।
मेडिकल कॉलेज प्रशासन हरकत में आया है और जांच के आदेश दे दिए गए हैं। एसआईसी डॉ. सचिन माहुर ने बताया कि वार्ड नंबर छह में ड्यूटी पर मौजूद तीन जूनियर डॉक्टरों और सिस्टर इंचार्ज से पूछताछ की जाएगी। यह जानने की कोशिश की जा रही है कि इतनी गंभीर हालत में मरीज को डिस्चार्ज क्यों किया गया। प्रशासन ने दोषियों पर सख्त कार्रवाई का भरोसा दिलाया है, लेकिन फिलहाल सवाल यही है – क्या यह कार्रवाई उस मासूम के आंसुओं का जवाब बन सकेगी?