ताजा खबर

दिल्ली में क्यों नहीं हो पाई आर्टिफिशियल बारिश? IIT कानपुर के निदेशक ने दिया जवाब

Photo Source :

Posted On:Wednesday, October 29, 2025

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए आईआईटी कानपुर की ओर से हाल ही में की गई क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम वर्षा) को लेकर सवाल उठने लगे थे। बुधवार को संस्थान के निदेशक प्रोफेसर मणिंद्र अग्रवाल ने मीडिया को संबोधित करते हुए इन सवालों का विस्तार से जवाब दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि दिल्ली के वायुमंडल में नमी का स्तर बहुत कम होने की वजह से बारिश नहीं हो सकी, लेकिन इस प्रक्रिया से वायु प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है।

कम नमी बनी बड़ी बाधा

प्रो. अग्रवाल ने बताया कि 28 अक्टूबर को जब क्लाउड सीडिंग की गई थी, उस समय बादलों में नमी का स्तर मात्र 15 प्रतिशत था। इस कारण वर्षा की बूंदें बनने के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ नहीं बन पाईं। उन्होंने कहा, “हमने इस प्रयोग से बेहद उपयोगी डेटा एकत्र किया है, जो भविष्य में क्लाउड सीडिंग को अधिक प्रभावी बनाने में मदद करेगा।”

प्रदूषण में आई मामूली कमी

आईआईटी टीम ने दिल्ली के 15 अलग-अलग स्थानों पर वायु गुणवत्ता मापक यंत्र लगाए थे। इन आंकड़ों से पता चला कि सीडिंग के बाद हवा में मौजूद PM 2.5 और PM 10 कणों में 6 से 10 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। प्रो. अग्रवाल ने कहा कि यह नतीजा इस बात का संकेत है कि क्लाउड सीडिंग का असर सीमित नमी के बावजूद भी जमीन पर महसूस हुआ।

लागत और भविष्य की योजना

क्लाउड सीडिंग में खर्च को लेकर भी सवाल उठे थे। इस पर प्रो. अग्रवाल ने बताया कि कानपुर से विमान दिल्ली लाने के कारण ईंधन लागत अधिक हुई। अगर भविष्य में यह प्रक्रिया दिल्ली या आसपास के एयरपोर्ट से की जाए, तो खर्च काफी घट जाएगा। उन्होंने बताया कि लगभग 300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में क्लाउड सीडिंग की गई, जिस पर करीब 60 लाख रुपये की लागत आई। औसतन प्रति वर्ग किलोमीटर करीब 20,000 रुपये का खर्च आया। यदि पूरे सर्दी के मौसम (चार महीने) में हर 10 दिन में एक बार यह प्रक्रिया की जाए, तो कुल लागत 25 से 30 करोड़ रुपये के बीच रहेगी — जो दिल्ली सरकार के प्रदूषण नियंत्रण बजट से कई गुना कम है।

दो और ट्रायल की तैयारी

आईआईटी कानपुर 29 अक्टूबर को दो और क्लाउड सीडिंग ट्रायल करने जा रहा है। इस बार वायुमंडलीय नमी बढ़ने की संभावना है, इसलिए वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस बार हल्की बारिश देखने को मिल सकती है।

कृत्रिम बारिश स्थायी समाधान नहीं

प्रो. अग्रवाल ने यह भी स्वीकार किया कि क्लाउड सीडिंग प्रदूषण का स्थायी हल नहीं है। उन्होंने कहा, “यह केवल अस्थायी राहत है। असली समाधान तब होगा जब हम प्रदूषण के मूल स्रोतों को कम करें। जब हवा साफ होगी, तो ऐसी तकनीकों की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।”

क्लाउड सीडिंग कैसे होती है

इस प्रक्रिया में एक विशेष मिक्चर (मिश्रण) को बादलों में इंजेक्ट किया जाता है, जिसमें कॉमन सॉल्ट, रॉक सॉल्ट और सिल्वर आयोडाइड जैसे कण शामिल होते हैं। ये कण बादलों में जाकर जलवाष्प को संघनित (कंडेंस) करते हैं। जब नमी अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है तो बूंदें बनकर नीचे गिरती हैं, जिससे वर्षा होती है।


झाँसी, देश और दुनियाँ की ताजा ख़बरे हमारे Facebook पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें,
और Telegram चैनल पर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



You may also like !

मेरा गाँव मेरा देश

अगर आप एक जागृत नागरिक है और अपने आसपास की घटनाओं या अपने क्षेत्र की समस्याओं को हमारे साथ साझा कर अपने गाँव, शहर और देश को और बेहतर बनाना चाहते हैं तो जुड़िए हमसे अपनी रिपोर्ट के जरिए. jhansivocalsteam@gmail.com

Follow us on

Copyright © 2021  |  All Rights Reserved.

Powered By Newsify Network Pvt. Ltd.