भारत के दिग्गज उद्योगपति गौतम अडाणी ने वियतनाम में 10 अरब अमेरिकी डॉलर के बड़े निवेश की घोषणा की है। यह घोषणा वियतनाम की राजधानी हनोई में वियतनाम की कम्यूनिस्ट पार्टी के महासचिव तो लाम के साथ मुलाकात के दौरान हुई। इस निवेश की जानकारी प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान ब्लूमबर्ग ने दी है। अडाणी समूह वियतनाम में बुनियादी ढांचे (इन्फ्रास्ट्रक्चर), नवीकरणीय ऊर्जा (रिन्युएबल एनर्जी) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसे भविष्यगामी क्षेत्रों में अपनी भागीदारी को मजबूत करना चाहता है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, अडाणी समूह पहले से ही वियतनाम में सक्रिय है। समूह की एक प्रमुख कंपनी अडाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन वियतनाम के द नांग शहर में स्थित लियन चियू पोर्ट के विकास के लिए 2 अरब डॉलर से अधिक का निवेश करने की योजना बना रही है। यह प्रस्ताव वियतनामी सरकार की सहमति के बाद ही संभव हो पाया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वियतनाम सरकार भी इस रणनीतिक साझेदारी को लेकर गंभीर है।
अगर यह 10 अरब डॉलर का निवेश वास्तविकता में बदलता है, तो यह वियतनाम में किसी विदेशी कंपनी द्वारा किया गया सबसे बड़ा निवेश होगा। यह न केवल वियतनाम की अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक सिद्ध होगा, बल्कि भारत और वियतनाम के द्विपक्षीय संबंधों को भी नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा।
अडाणी समूह का यह कदम एशिया में भारत की आर्थिक उपस्थिति को और मज़बूत करता है। अडाणी हाल ही में चीन का भी दौरा कर चुके हैं, जहां उन्होंने उपकरण आपूर्तिकर्ताओं (equipment suppliers) से रणनीतिक साझेदारी पर चर्चा की थी। यह दिखाता है कि समूह की योजना व्यापक है और वह पूरे एशिया में अपने कारोबारी विस्तार की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
वियतनाम तेजी से निर्माण और लॉजिस्टिक्स हब के रूप में उभर रहा है। अडाणी समूह का यह निवेश वियतनाम की आर्थिक विकास रणनीति के साथ पूरी तरह से मेल खाता है। खासतौर पर हरित ऊर्जा और बंदरगाहों के विकास में अडाणी की विशेषज्ञता, वियतनाम को दीर्घकालिक लाभ पहुंचा सकती है। हरित ऊर्जा के क्षेत्र में यह निवेश वियतनाम को स्थायी विकास की ओर ले जाएगा, जबकि पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से व्यापारिक गतिविधियों को बल मिलेगा।
भारत के लिए भी यह एक सकारात्मक संकेत है कि भारतीय कंपनियां वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना रही हैं और एशिया के उभरते देशों में नेतृत्वकारी भूमिका निभा रही हैं। अडाणी समूह का यह साहसिक कदम भारत की "एक्ट ईस्ट" नीति को भी मजबूती प्रदान करता है।